हर त्यौहार पीछे एक कहानी अपनी एक कहानी होती है, जो धार्मिक मान्यताओं पर आधारित होती है. एक हिरन्याक्श्यप नाम का राजा था, जो खुद को सबसे अधिक बलवान समझता था, इसलिए वह देवताओं से घृणा करता था और उसे देवताओं के भगवान विष्णु का नाम सुनना भी पसंद नहीं था, लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था. यह बात हिरन्याक्श्यप को बिलकुल पसंद नहीं थी, वह कई तरह से अपने पुत्र को कराता था और भगवान विष्णु की उपासना करने से रोकता था, पर प्रह्लाद एक नहीं सुनता, उसे अपने भगवान की भक्ति में लीन रहता था. इस सबसे परेशान होकर एक दिन हिरन्याक्श्यप ने एक योजना बनाई.
जिसके अनुसार उसने अपनी बहन होलिका को वरदान प्राप्त था, कि आग पर उसे विजय प्राप्त है, उसे अग्नी जला नहीं सकती को अग्नी की बेदी पर प्रहलाद को लेकर बैठने को कहा. प्रहलाद अपनी बुआ के साथ बेदी पर बैठ गया और अपने भगवान की भक्ति में लीन हो गया. तभी अचानक होलिका जलने लगी और आकाशवाणी हुई, जिसके अनुसार होलिका को याद दिलाया गया, कि अगर वह अपने वरदान का दुरुपयोग करेगी, तब वह खुद जल कर राख हो जाएगी और ऐसा ही हुआ. प्रहलाद का अग्नी कुछ नहीं बिगाड़ पाई और होलिका जल कर भस्म हो गई. इसी तरह प्रजा ने हर्षोल्लास से उस दिन खुशियाँ मनाई और आज तक उस दिन को होलिका दहन के नाम से मनाया जाता है और अगले दिन रंगो से इस दिन को मनाया करते है.
कैसे मनाते हैं होली
मध्य भारत में रंग पञ्चमी का अधिक महत्त्व है, लोग टोली बनाकर रंग, गुलाल लेकर एक दूसरे के घर जाते है और एक दूसरे को रंग लगाते है और कहते है “बुरा न मानों होली है ”. मध्य भारत के इन्दोर शहर में होली की कुछ अलग ही धूम होती है, इसे रंग पञ्चमी की “गैर” कहा जाता है, जिसमे पूरा इंदोर शहर एक साथ निकलता है और नाचते गाते त्यौहार का आनंद लिया जाता. इस तरह के आयोजन के लिए 15 दिन पहले से ही तैयारियाँ की जाती है.
रंगों के इस त्यौहार को “फाल्गुन महोत्सव” भी कहा जाता है, इसमें पुराने गीतों को ब्रज की भाषा में गाया जाता. भांग का पान भी होली का एक विशेष भाग है. नशे के मदमस्त होकर सभी एक दुसरे से गले लगते सारे गिले शिक्वे भुलाकर सभी एक दुसरे के साथ नाचते गाते है.
होली पर घरों में कई पकवान बनाते जाते है. स्वाद से भरे हमारे देश में हर त्यौहार में विशेष पकवान बनाये जाते है.
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