बठिंडा का किला मुबारक / Fort Mubarak of Bathinda
hindikro.blogspot.in , Lastest update, may 15- 2018 , 12:09 PM




बठिंडा पंजाब का एक बहुत ही पुराना और महत्वपूर्ण शहर है। यह मालवा इलाके में स्थित है। बठिंडा के ही जंगलों में कहा जाता है कि गुरु गोविंद सिंह जी ने चुमक्का नामन ताकतों को ललकारा था और उन से लडे थे। बठिंडा का आजादी की लडाई में भी महत्वपूर्ण योगदान था। इस में एक खास किला है 'किला मुबारक'।

आधुनिक बठिंडा का जन्म
ये माना जाता है कि राओ भट्टी में बठिंडा शहर को लखी जंगल में तीसरी सदी में स्थापित किया था। फिर इस शहर को बरारों नें हडप लिया था। बाल राओ भट्टी नें फिर इसे ९६५ में हासिल किया और तब इसका नाम बठिंडा पड़ा (उन्हीं के नाम पर)। यह राजा जयपाल की राजधानी भी रही है।
१००४ में घज़नी के महमूद नें इसका किला छीन लिया। फिर मुहमद घोरी नें हमला किया और बठिंडा का किला छीन लिया। फिर प्रिथवी राज चौहान नें १३ महीनों के बाद तगडी लडाई के पश्चात इसे फिर से जीता।
रजिया सुलतान, भारत की पहली महिला शासक बठिंडा में ऐपरिल १२४० में कैद की गई थी। उसे अलतुनिया की कोशिशों द्वारा औगस्त में (उसी साल में) वहाँ से छुडा लिया गया। रजिया और अलतुनिया की शादी हुई लेकिन वे कैठल के पास चोरों द्वारा १३ औकटूबर को मारे गये।
सिद्धू बरारों को लोदी के शासन में बठिंडा से निकाल दिया गया था लेकिन बाबुर के शासन में वापिस स्थान दे दिया गया था। कुछ सालों बाद, रूप चन्द नाम के सिख्ख पंजाब के इतिहास में आये। रूप चंद जी के लडके फूल नें लंगर की प्रथा चलाई और १६५४ के आस पास एक किला बनाया।
किला मुबारक


माना जाता है कि इस किले का निर्माण उस समय हुआ था जब उत्तर भारत में सम्राट कनिष्क का शासन था। सम्राट कनिष्क और राजा देब ने मिलकर इस किले को 90-110 ई. में बनवाया था। 11वीं शताब्दी में किले पर महमूद गजनवी ने कब्जा कर लिया था। सन् 1754 में फुलकिया के राजा प्रमुख आला सिंह ने बठिंडा किला पर फतेह हासिल की थी। इसके बाद भारतीय संघ में विलय होने तक यह किला पटियाला शासकों के अधीन रहा।
पहली महिला शासक रज़िया सुल्तान से जुड़ा इतिहास
रजिया पुरुषों की तरह कपड़े पहनती थीं और खुले दरबार में बैठती थीं। उनके अंदर एक बेहतर शासिका के सारे गुण थे। एक समय ऐसा भी आया जब लग रहा था कि रजिया दिल्ली सल्तनत की सबसे ताकतवर मल्लिका बनेंगी, लेकिन गुलाम याकूत के साथ रिश्तों के कारण ऐसा नहीं हो पाया। याकूत रजिया सुल्तान को घोड़े की सवारी कराता था और उनका सबसे नज़दीकी विश्वासपात्र भी था। याकूत के तुर्की न होने की वजह से और रज़िया के उसके साथ सम्बन्ध नज़दीकी होने की वजह से, रज़िया को उनके ही बचपन के दोस्त अल्तुनिया द्वारा एक युद्ध की साज़िश कर इस किले में कैद कर लिया गया। जिसके बाद रज़िया ने मौत के डर से अल्तुनिया से विवाह कर लिया।
भलाई और सुख के लिए प्रार्थना करने आए थे दसवें सिख गुरू

दसवें सिख गुरू, गुरू गोविन्द सिंह इस किले मे 1705 के जून माह में आए थे और इस जगह की भलाई और सुख के लिए प्रार्थना की थी। पटियाला राज्य के महाराजा आला सिंह ने इस किले को 1754 में अपने अधीन कर लिया था और इस किले का नाम गोविंदघर कर दिया गया, लेकिन जल्द ही इस जगह को बकरामघर के नाम से बुलाया जाने लगा।
इस किले के सबसे ऊपर गुरुद्वारे का निर्माण करवाया गया है। इस गुरुद्वारे का निर्माण पटियाला के महाराजा करम सिंह ने करवाया था। किले के अंदर का हिस्सा किला अंदरून कहलाता है। किला अंदरून के अंदर 13 शाही कक्ष हैं, जो हिन्दू पौराणिक कथाओं के दृश्यों से सजे हुए हैं। किले का परिसर, शहर के बीचोबीच यानि कि शहर के ह्रदय में लगभग 10 एकड़ की ज़मीन पर फैला हुआ है।
किले के परिसर में किला अंदरून के किनारे रन बास( मेहमान घर), और दरबार हॉल भी स्थापित हैं। दरबार हॉल में कई अलग अलग तरह और आकार के आईने लगे हुए हैं। दरबार हॉल में कई खूबसूरत तस्वीर व चित्रकारी के नमूने भी लगे हुए हैं, जो सिक्ख शासकों की कला में गुणवत्ता को प्रदर्शित करते हैं। किले में भूमिगत सीवरेज प्रणाली भी मौजूद है।
हालाँकि कई सदियों पुराने इस किले की हालत अभी इतनी अच्छी नहीं है और यह क्षतिग्रस्त अवस्था में भी पहुँच चुकी है, जिसकी वजह से सन् 2004 में विश्व स्मारक कोष द्वारा 100 "सबसे लुप्तप्राय स्मारकों" की सूचि में इसे शामिल कर लिया गया था। पर अब भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण द्वारा इसकी मरम्मत का काम शुरू कर दिया जा चूका है। विश्व स्मारक संरक्षण संस्थान ने भी इस स्मारक के संरक्षण के लिए वित्त पोषित किये हैं।

Source :-

Post a Comment

और नया पुराने