Dharti Ka Veer Yodha Prithviraj Chauhan ka itihas | धरती का वीर योधा पृथ्वीराज चौहान का इतिहास




पृथ्वीराज  चौहान एक राजपूत राजा थे जिन्होंने 12वी सदी में उत्तरी भारते के दिल्ली और अजमेर साम्राज्यों पर शाशन किया था | पृथ्वीराज चौहान दिल्ली के सिंहासन पर राज करने वाले अंतिम स्वत्रंत हिन्दू शाषक थे | राय पिथोरा के नाम से मशहूर इस राजपूत राजा ने चौहान वंश में जन्म लिया था |पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1149 में अजमेर में हुआ था | उनके पिता का नाम सोमेश्वर चौहान और माता का नाम कर्पूरी देवी था |
Early Life of Prithviraj Chauhan पृथ्वीराज चौहान का प्रारम्भिक जीवन
Prithviraj Chauhan पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही बहुत बहादुर और युद्ध कला में निपुण थे | उन्होंने बचपन से ही शब्द भेदी बाण कला का अभ्यास किया था जिसमे आवाज के आधार पर वो सटीक निशाना लगाते थे | 1179 में युद्ध में उनके पिता की मौत के बाद चौहान को उत्तराधिकारी घोषित किया गया | उन्होंने दो राजधानियों दिल्ली और अजमेर पर शाषन किया जो उनको उनके नानाजी अक्रपाल और तोमरा वंश के अंगपाल तृतीय ने सौंपी थी | राजा होते हुए उन्होंने अपने साम्राज्य को विस्तार करने के लिए कई अभियान चलाये और एक बहादुर योद्धा के रूप में जाने जाने लगे |  उनके मोहम्मद गौरी के साथ युद्ध की महिमा कनौज के राजा जयचंद की बेटी संयुक्ता के पास पहुच गयी |
जयचंद की ख्याति के दिनों में प्रतिद्वंदी राजपूत वंश ने खुद को दिल्ली में स्थापित कर लिया था | उस वक़्त दिल्ली पर पृथ्वीराज चौहान का राज था जो एक बहादुर और निडर व्यक्ति था | लगातार सैन्य अभियानों के चलते पृथ्वीराज ने अपना साम्राज्य राजस्थान के साम्भर , गुजरात और पूर्वी पंजाब तक फैला दिया था | उनकी लगातार बढ़ती ख्याति को देखकर शक्तिशाली शाषक जयचंद उससे इर्ष्या करने लग गया था |Prithviraj Chauhan  पृथ्वीराज के बहादुरी के किस्से देश में दूर दूर तक फ़ैल गये और वो आमजन में बातचीत का  मुख्य हिस्सा बन गये थे
Prithviraj Chauhan and Sanyogita Love Story पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम गाथा


पृथ्वीराज की बहादुरी के किस्से जब जयचंद की बेटी संयोगिता के पास पहुचे तो मन ही मन वो पृथ्वीराज से प्यार करने लग गयी और उससे गुप्त रूप से काव्य पत्राचार करने लगी | संयोगिता के अभिमानी पिता जयचंद को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने अपनी बेटी और उसके प्रेमी पृथ्वीराज को सबक सिखाने का निश्चय किया |
जयचंद ने अपनी बेटी का स्वयंवर आयोजित किया जिसमे हिन्दू वधु को अपना वर खुद चुनने की अनुमति होती थी और वो जिस भी व्यक्ति के गले में माला डालती वो उसकी रानी बन जाती | जयचंद ने देश के सभी बड़े और छोटे राजकुमारों को शाही स्वयंवर में साम्मिलित होने का न्योता भेजा लेकिन उसने जानबुझकर पृथ्वीराज को न्योता नही भेजा | यही नही बल्कि पृथ्वीराज को बेइज्जत करने के लिए द्वारपालों के स्थान पर पृथ्वीराज की मूर्ती लगाई |
Prithviraj Chauhan पृथ्वीराज को जयचंद की इस सोची समझी चाल का पता चल गया और उसने अपनी प्रेमिका सयोंगिता को पाने के लिए एक गुप्त योजना बनाई | स्वयंवर के दिन सयोंगिता सभा में जमा हुए सभी राजकुमारों के पास से गुजरती गयी | उसने सबको नजरंदाज करते हुए मुख्य द्वार तक पहुची और उसने द्वारपाल बने पृथ्वीराज की मूर्ति के गले में हार डाल दिया | सभा में एकत्रित सभी लोग उसके इस फैसले को देखकर दंग रह गये क्योंकि उसने सभी राजकुमारों को लज्जित करते हुए एक निर्जीव मूर्ति का सम्मान किया |
लेकिन जयचंद को अभी ओर झटके लगने बाकि थे | पृथ्वीराज उस मूर्ति के पीछे द्वारपाल के वेश में खड़े थे और उन्होंने धीरे से संयोगिता को उठाया और अपने घोड़े पर बिठाकर द्रुत गति से अपनी राजधानी दिल्ली की तरफ चले गये |जयचंद और उसकी सेना ने उनका पीछा किया और परिणामस्वरूप उन दोनों राज्यों के बीच 1189 और 1190 में भीषण युद्ध हुआ जिसमे दोनों सेनाओ कको काफी नुकसान हुआ
मुहम्मद गौरी का आक्रमण और पृथ्वीराज की उदारता Muhammad Gauri Attack
पृथ्वीराज और जयचंद दोनों के इस लड़ाई का फायदा उठाते हुए एक अफघानी घुसपैठिया मुहम्मद गौरी ने भारत में प्रवेश कर लिया और पंजाब में घजनाविद की सेना को पराजित कर दिया | मुहम्मद गौरी ने अब पृथ्वीराज के साम्राज्य तक अपने राज का विस्तार करने का निश्चय किया |मुहम्मद गौरी ने पूर्वी पंजाब के भटिंडा के किले की घेराबंदी कर ली जो कि पृथ्वीराज का सीमान्त प्रांत था | हिन्दुओ ने हमेशा युद्ध के नियमो के अनुसार सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त से पहले दिन में लड़ाई का पालन किया लेकिन बुज्दिल मुस्लिम शाशकों ने सदैव रात्री को ही आक्रमण किया जब हिन्दू राजा और सैनिक उनके सैनिको के घावो का उपचार कर रहे होते है |
मुहम्मद गौरी ने भी रात को अचानक आक्रमण कर दिया और उसके मंत्रियों ने जयचंद से मदद की गुहार की लेकिन जयचंद ने इसका तिरस्कार करते हुए मदद करने से मना कर दिया |निडर पृथ्वीराज ने भटिंडा की तरफ अपनी सेना भेजी और 1191 में प्राचीन शहर थानेसर के निकट तराइन नामक जगह पर उसके शत्रुओ से सामना हुआ | जिद्दी राजपूतो के आक्रमण की बदोलत पृथ्वीराज  ने विजय प्राप्त की और मुस्लिम सेना मुहम्मद गौरी को पृथ्वीराज के समक्ष छोडकर रण से भाग गयी |
मुहम्मद गौरी को बेडियो में बांधकर पृथ्वीराज की राजधानी पिथोरगढ़ लाया गया और उसने पृथ्वीराज के समक्ष दया की भीख माँगी | मुहम्मद गौरी ने घुटनों के बल बैठकर उसकी शक्ति की तुलना अल्लाह से करी | भारत के वैदिक नियमो के अनुसार पृथ्वीराज ने मुहम्मद गौरी को क्षमा कर दिया क्योंकि वो एक पड़ोसी राज्य का ना होकर एक विदेशी घुसपैठिया था | बहादुर राजपूत पृथ्वीराज  ने सम्मानपूर्वक मुहम्मद गौरी को रिहा कर दिया |
पृथ्वीराज चौहान की हार और कैद Prithviraj Chauhan Defeat
मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज   की उदारता का सम्मान ना करते हुए 1192 में फिर रात को पृथ्वीराज पर आक्रमण कर दिया | मुहम्मद गौरी ने 17वी बार अपनी पहले से मजबूत सेना के साथ मध्यांतर से पहले राजपूत सेना पर आक्रमण कर पृथ्वीराज को पराजित कर दिया | इस बार पराजित पृथ्वीराज को बेडियो में बांधकर अफ़ग़ानिस्तान लाया गया |
Prithviraj Chauhan पृथ्वीराज की व्यथा यही पर खत्म नहीं हुयी | घोर में कैदी रहते हुए उसको घसीटते हुए मुहम्मद गौरी के दरबार में लाया गया और उसको मुस्लिम बनने के लिए प्रताड़ित किया गया | जब पृथ्वीराज को मुहम्मद गौरी  के समक्ष लाया गया तो वो गौरी की आंख में आँख मिलाकर घुर रहा था | पृथ्वीराज  का ये कृत्य गौरी को बहुत अपमानित लगा और उसने पृथ्वीराज को आँखे नीची करने का आदेश दिया | पृथ्वीराज ने उसको कहा कि “आज मेरी वजह से ही तू जिन्दा है और एक राजपूत की आँखे मौत के बाद ही नीचे होती है ”
पृथ्वीराज की ये बात सुनकर गौरी आग बबूला हो गया और उसने पृथ्वीराज की आँखे गर्म सलाखों से जला देने का आदेश दिया | पृथ्वीराज की आँखे फोड़ देने के बाद कई बार उसको गौरी के दरबार में लाकर प्रताड़ित किया जाता था और उसको भारत की संस्कृति को नकली बताकर उसे गालिया दी जाती थी | उस समय पृथ्वीराज का पूर्व जीवनी लेखक चन्दवरदाई  उनके साथ था और उसने पृथ्वीराज की जीवन पर पृथ्वीराज रासो नाम की जीवन गाथा लिखी थी |चन्दवरदाई ने पृथ्वीराज को उनके साथ हुए अत्याचारों का बदला लेने को कहा |
उन दोनों को एक मौका मिला जब गौरी ने तीरंदाजी का खेल आयोजित किया | चन्दवरदाई की सलाह पर पृथ्वीराज ने गौरी से इस खेल में सामिलित होने की इच्छा जाहिर की | पृथ्वीराज की ये बात सुनकर गौरी के दरबारी खिक खिलाकर हंसने लगे कि एक अँधा कैसे तीरंदाजी में हिस्सा लेना चाहता है | पृथ्वीराज ने मुहम्मद गौरी से कहा कि या तो वो उसे मार दे या फिर खेल में हिस्सा लेने दे | चन्दरवरदाई ने पृथ्वीराज की और से गौरी को कहा कि एक राजा होने के नाते वो एक राजा के आदेश की मान सकता है | मुहम्मद गौरी के जमीर को चोट लगी और वो राजी हो गया |
बताये हुए दिन गौरी अपने सिंहासन पर बैठा हुआ था और पृथ्वीराज को मैदान में लाया गया | पृथ्वीराज को उस समय पहली बार बेडियो से मुक्त किया गया | गौरी ने पृथ्वीराज को तीर चलाने का आदेश दिया और पृथ्वीराज ने गौरी की आवाज़ की दिशा में गौरी की तरफ तीर लगाया और गौरी उसी समय मर गया | इस दृश्य को चन्दरवरदाई ने बड़े सुंदर शब्दों में उल्लेख किया
दस कदम आगे , बीस कदम दाए ,  बैठा है सुल्तान , अब मत चुको चौहान , चला दो अपना बाण
पृथ्वीराज के अचानक हमले ने गौरी को मौत के घाट उतार दिया और दिल्ली पर सबसे ज्यादा समय तक राज करने वाले अंतिम हिन्दू शाषक को गौरी के मंत्रियों ने हत्या कर दी | उन्होंने पृथ्वीराज के शव को हिन्दू रीती रिवाजो के अनुसार क्रियाकर्म नही करने दिया और मुहम्मद गौरी की कब्र के नजदीक उनके शव को दफना दिया | उन्होने पृथ्वीराज की कब्र पर थूकने और अपमानित करने की परम्परा नही छोड़ी जो आज भी वहा प्रचलित है | इस तरह एक महान हिन्दू शाशक का अंत हुआ और इसके बाद अगले 700 वर्ष तक भारत मुस्लिमो के अधीन रहा जब तक की ब्रिटिश सरकार नही आयी |
इसके बाद  कई हिन्दू राजा दिल्ली को मुस्लिमो से मुक्त कराने में लगे रहे जिसमे राणा अनंग पाल , राणा कुम्भा , राजा मलदेव राठोड , वीर दुर्गादास राठोड , राणा सांगा , राजा विक्रमादित्य, श्रीमंत विश्वास राय आदि ने मुस्लिम शाशको ने कई वर्षो तक सामना किया |

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